
“हवा में मौत की छाया: जब नियमन झुकता है, और जवाबदेही उड़नछू हो जाती है”
12 जून को अहमदाबाद में हुआ विमान हादसा न केवल तकनीकी या मानवीय चूक का परिणाम था, बल्कि यह भारत की शहरी नीति, सरकारी नियमन और जवाबदेही की गहरी विफलता का प्रतिबिंब है। यह त्रासदी हमें मजबूर करती है कि हम केवल विमान की बनावट या पायलट की क्रिया पर ध्यान न दें, बल्कि हवाई अड्डों के आसपास की अव्यवस्थित बस्तियों, अनियमित निर्माणों और राजनीतिक संरक्षण प्राप्त बिल्डरों के गठजोड़ को भी कटघरे में खड़ा करें।
✍️ संवैधानिक दृष्टिकोण: नागरिक जीवन का अधिकार बनाम विकास का भ्रम
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 – “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार” स्पष्ट करता है कि हर नागरिक को सुरक्षित वातावरण और सार्वजनिक संरचनाओं की न्यूनतम सुरक्षा प्राप्त होनी चाहिए। लेकिन जब बहुमंजिला इमारतें हवाई पट्टी के ठीक मार्ग में खड़ी कर दी जाती हैं, और नागरिकों को इस अनजाने जोखिम में झोंक दिया जाता है, तो यह स्पष्ट उल्लंघन है। यह मामला न्यायिक सक्रियता की मांग करता है, क्योंकि संवैधानिक संस्थाएं स्वयं देख रही हैं कि राज्य सुरक्षा मानकों के पालन में विफल हो गया है।
✍️ राजनैतिक दृष्टिकोण: चुनावी चंदे बनाम जनसुरक्षा
बहुमंजिला अवैध इमारतों को नगर निगम की मंजूरी तभी मिलती है जब स्थानीय नेताओं और बिल्डर लॉबी के बीच सौदेबाज़ी होती है। कई बार एयरपोर्ट अथॉरिटी ने आपत्ति जताई, लेकिन राजनीतिक आदेशों पर नज़रअंदाज़ कर दिया गया। अहमदाबाद नगर निगम द्वारा मंजूर की गई इमारतों में से कई को DGCA से No Objection Certificate (NOC) नहीं मिला था। यह लचर व्यवस्था दर्शाती है कि जनसुरक्षा के ऊपर बिल्डर हित और चुनावी चंदा हावी है।
✍️ आर्थिक दृष्टिकोण: सरकारी संपत्ति का निजी दोहन और अनियंत्रित शहरीकरण
एयरपोर्ट के आसपास की ज़मीन की कीमतें सबसे अधिक होती हैं। इसे देखते हुए बिल्डरों ने इन इलाकों को हाईराइज़ अपार्टमेंट से पाट दिया।
सरकार, विशेषकर मोदी सरकार, ने लगभग सभी प्रमुख एयरपोर्ट (अहमदाबाद सहित) को निजी हाथों (विशेष रूप से अडानी समूह) को सौंप दिया है। सवाल उठता है कि: “जब हवाई क्षेत्र का नियंत्रण निजी हाथों में है, तो क्या उनके पास OLS या AZP उल्लंघन रोकने की जिम्मेदारी है या मुनाफा कमाने की?”
इससे स्पष्ट है कि राजकोषीय जवाबदेही नहीं, बल्कि पूंजीगत लाभ प्राथमिकता में है।
✍️ विधिक दृष्टिकोण: OLS उल्लंघन और प्रशासनिक आपराधिक लापरवाही
भारत में Obstacle Limitation Surfaces (OLS) और Aerodrome Zoning Plan (AZP) के तहत एयरपोर्ट के आसपास सीमित ऊँचाई में ही निर्माण अनुमत है।
यदि अहमदाबाद में बनी बहुमंजिला इमारतों ने इन नियमों का उल्लंघन किया और कोई प्रशासनिक कार्रवाई नहीं हुई, तो यह न केवल नियम उल्लंघन बल्कि Indian Penal Code की धारा 304A (गैर इरादतन हत्या के लिए लापरवाही) के अंतर्गत भी आता है।
यह एक सामूहिक विधिक चूक है, जिसमें AMC, DGCA, AAI और बिल्डरों की भूमिका स्पष्ट रूप से संदिग्ध है।
✍️ सामाजिक दृष्टिकोण: मध्यम वर्गीय बस्तियों की त्रासदी और व्यवस्था पर अविश्वास
जिस मेडिकल कॉलेज हॉस्टल पर विमान गिरा, वहां के छात्र, नर्सिंग स्टाफ, और आसपास के घरों में रहने वाले लोग मध्यमवर्गीय नागरिक थे, जो इस बात से अनजान थे कि उनका घर हवाई मार्ग में आता है।
यह “निर्दोष पर दंड” की सबसे दुखद स्थिति है। यह हादसा दर्शाता है कि नागरिकों को किसी सूचना प्रणाली (information disclosure system) के बिना जोखिम में डाला गया।
✍️ त्रासदी अकेले विमान की नहीं, व्यवस्था की है:
जब केंद्र सरकार की प्राथमिकता एयरपोर्ट बेचना, फोटो खिंचवाना और PR अभियान चलाना हो जाती है, तब विमान हादसे केवल तकनीकी विफलता नहीं रहते—वे राज्य की राजनीतिक और संस्थागत असफलता के प्रतीक बन जाते हैं।
✍️ आज की सबसे जरूरी मांग यह है:
1. SC द्वारा विशेष जांच दल (SIT) का गठन हो जो एयरपोर्ट ज़ोनिंग उल्लंघन की जांच करे।
2. DGCA और AAI में जवाबदेही तय हो, और AMC के भ्रष्ट अफसरों पर केस दर्ज हों।
3. भविष्य के लिए OLS क्षेत्र में GIS आधारित डिजिटल निगरानी प्रणाली लागू हो।
4. जनता को air risk map disclosure system के ज़रिए जागरूक किया जाए—जैसे भूकंप या बाढ़ क्षेत्र घोषित किए जाते हैं।
“यदि हम शहरी विकास को वोट बैंक और कॉर्पोरेट दबाव के तहत नियंत्रित करते रहेंगे, तो यह विकास नहीं, विध्वंस का मार्ग होगा। अहमदाबाद की आग अब चेतावनी बन चुकी है—क्या सरकार सुनेगी?”