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यादों की स्याही और कागज की खुशबू

एक युग का अंत अलविदा रजिस्टर्ड पोस्ट

एक युग का अंत: अलविदा ‘रजिस्टर्ड पोस्ट’, यादों की स्याही और कागज़ की ख़ुशबू

1 सितंबर 2025 से, भारतीय डाक का एक सबसे विश्वसनीय साथी, ‘रजिस्टर्ड पोस्ट’ अब इतिहास बन जाएगा। यह केवल एक सेवा का बंद होना नहीं है, बल्कि एक युग की ख़ामोश विदाई है। 50 साल से भी ज़्यादा समय तक यह हल्की-सी थाप के साथ हमारे दरवाज़ों पर दस्तक देता रहा। वह पोस्टमैन जिसकी साइकिल की घंटी सुनकर हमारे दिल धड़क जाते थे, वह आज भी हमारी यादों में ज़िंदा है। यह केवल संचार का एक माध्यम नहीं था, बल्कि यह हमारे जीवन के महत्वपूर्ण पलों, खुशी, इंतज़ार और कभी-कभी दुख का भी साक्षी था।
अब यह सेवा स्पीड पोस्ट में समाहित हो रही है, जो तेज़, आधुनिक और ट्रैक करने योग्य है। लेकिन क्या आधुनिकता की यह दौड़ हमारी पुरानी यादों को भी साथ ले पाएगी?
सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
रजिस्टर्ड पोस्ट ने भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह सिर्फ़ काग़ज़ और डाक टिकट नहीं था, बल्कि यह भरोसे और भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक था। एक समय था जब लोग स्याही से चिट्ठियाँ लिखते थे, उन पर डाक टिकट चिपकाकर लिफाफे को चूमते थे और फिर उसे डाकघर के लाल बक्से में डाल देते थे। यह लिफाफा खोएगा नहीं, भटकेगा नहीं, इस बात की गारंटी रजिस्टर्ड पोस्ट ही देता था। वह रसीद, वह संतोष, “हाँ, यह पहुँच गई”, यह एहसास आज की डिजिटल दुनिया में कहाँ?
यह सेवा कानूनी और सरकारी दस्तावेजों के लिए सबसे भरोसेमंद मानी जाती थी। अदालती समन से लेकर नौकरी के ऑफर लेटर तक, हर महत्वपूर्ण संदेश रजिस्टर्ड पोस्ट से ही भेजा जाता था। इसने हमारे समाज में एक अनौपचारिक, लेकिन मजबूत विश्वास का ढांचा तैयार किया था।
आधुनिकता की दौड़ और बदलते संचार के साधन
डिजिटल क्रांति ने सब कुछ बदल दिया है। मोबाइल, ईमेल, और व्हाट्सएप ने काग़ज़ की ख़ुशबू को हमसे छीन लिया है। आज हम इंस्टेंट अपडेट और ट्रैकिंग चाहते हैं। इसीलिए, डाक विभाग ने भी समय के साथ तालमेल बिठाते हुए, अपनी पुरानी सेवाओं को बंद कर दिया है। 160 साल से अधिक पुरानी टेलीग्राम सेवा 2013 में ही बंद हो चुकी है, और पारंपरिक मनी ऑर्डर भी अब इलेक्ट्रॉनिक मनी ऑर्डर और ऑनलाइन लेन-देन से प्रतिस्थापित हो गया है। इन फैसलों से डाक विभाग आर्थिक रूप से संतुलित और कुशल बन रहा है।
लेकिन, इन बदलावों की कीमत क्या है? हमने उस इंतज़ार को खो दिया है जो डाकिये के आने पर महसूस होता था। उस उत्सुकता को खो दिया है जो लिफाफे को खोलने से पहले होती थी। वह मनी ऑर्डर जिसमें मामाजी के भेजे हुए पाँच रुपये होते थे, या वह छोटे भाई की पहली नौकरी की चिट्ठी, ये सब रजिस्टर्ड पोस्ट के सहारे ही तो हम तक पहुँचते थे। ये सिर्फ़ कागज़ के टुकड़े नहीं थे, बल्कि उनमें एक भावनात्मक निवेश था।
एक सादगी भरे दौर को सलाम
यह सच है कि स्पीड पोस्ट तेज़ी और सुविधा देता है, लेकिन वह गर्माहट, वह अपनापन जो पुराने संचार में था, वह शायद फिर कभी वापस नहीं आएगा। रजिस्टर्ड पोस्ट ने हमें जोड़ा – शहर से गाँव, माँ से बेटे, दोस्त से दोस्त। इसने रिश्तों को दूरी से आज़ाद किया। यह अब नहीं रहेगा, लेकिन हमारी यादों में हमेशा रहेगा – एक ऐसे दौर की निशानी जो हमें धैर्य रखना और रिश्तों को संजोना सिखाता था।
आज जब हम एक नए अध्याय की ओर बढ़ रहे हैं, तो हमें उस सादगी भरे दौर को सलाम करना चाहिए। भारतीय डाक, बदलते वक्त के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहा है, लेकिन हमारे दिल में वही पुरानी चिट्ठियों की ख़ुशबू हमेशा रहेगी। यह बदलाव केवल एक सेवा का अंत नहीं, बल्कि एक युग का अंत है, जिसे हम हमेशा यादों में संजोकर रखेंगे।

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