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सभी पशु दूध पीते है अपनी माँ का

लेकिन दूसरे की माताओ का दूध सिर्फ आदमी पीता है

दूध असल में अत्यधिक
कामोत्तेजक आहार है और
मनुष्य को छोड़कर पृथ्वी
पर कोई पशु इतना
कामवासना से भरा हुआ
नहीं है। और उसका एक
कारण दूध है। क्योंकि कोई
पशु बचपन के कुछ समय के
बाद दूध नहीं पीता,
सिर्फ आदमी को छोड़ कर।
पशु को जरूरत भी नहीं है।
शरीर का काम पूरा हो
जाता है। सभी पशु दूध
पीते है अपनी मां का,
लेकिन दूसरों की माताओं
का दूध सिर्फ आदमी
पीता है और वह भी आदमी
की माताओं का नहीं
जानवरों की माताओं का
भी पीता है।
दूध बड़ी अदभुत बात है,
और आदमी की संस्कृति में
दूध ने न मालूम क्या-क्या
किया है, इसका हिसाब
लगाना कठिन है। बच्चा
एक उम्र तक दूध पिये,ये
नैसर्गिक है। इसके बाद दूध
समाप्त हो जाना
चाहिए। सच तो यह है, जब
तक मां का स्तन से बच्चे
को दूध मिल सके, बस तब
तक ठीक हे। उसके बाद दूध
की आवश्यकता नैसर्गिक
नहीं है। बच्चे का शरीर
बन गया। निर्माण हो
गया—दूध की जरूरत थी,
हड्डी थी, खून था, मांस
बनाने के लिए—स्ट्रक्चर
पूरा हो गया, ढांचा
तैयार हो गया। अब
सामान्य भोजन काफी है।
अब भी अगर दूध दिया
जाता है तो यह सार दूध
कामवासना का निर्माण
करता है। अतिरिक्त है।
इसलिए वात्सायन ने काम
सूत्र में कहा है कि हर
संभोग के बाद पत्नी को
अपने पति को दूध
पिलाना चाहिए। ठीक
कहा है।
दूध जिस बड़ी मात्रा में
वीर्य बनाता है, और कोई
चीज नहीं बनाती।
क्योंकि दूध जिस बड़ी
मात्रा में खून बनाता है
और कोई चीज नहीं
बनाती। खून बनता है,
फिर खून से वीर्य बनता
है। तो दूध से निर्मित जो
भी है, वह कामोतेजक है।
। फिर पशुओं का
दूध है वह, निश्चित ही
पशुओं के लिए,उनके शरीर के
लिए, उनकी वीर्य ऊर्जा
के लिए जितना शक्ति
शाली दूध चाहिए। उतना
पशु मादाएं पैदा करती है।
जब एक गाए दूध पैदा
करती है तो आदमी के बच्चे
के लिए पैदा नहीं करती,
सांड के लिए पैदा करती
है। ओर जब आदमी का
बच्चा पिये उस दूध को और
उसके भीतर सांड जैसी
कामवासना पैदा हो
जाए, तो इसमें कुछ आश्चर्य
नहीं है। वह आदमी का
आहार नहीं है। इस बात को मनुष्य भली भांति समझता था कि पशुओं का दूध पीना एक अनैतिक कृत्य है क्योंकि एक स्त्री के स्तन का दूध उसके खुद के बच्चे के लिए है ना कि दूसरे के बच्चे के लिए तो गाय का भी दूध उसके बछड़े के लिए है मनुष्य के लिए नही है लेकिन इस अनैतिक कृत्य को मनुष्य अपने स्वार्थ के पूर्ति के लिए करता है तो उसने एक तरकीब निकाली शायद पहले पहल उसने दूध को भगवान पर चढ़ा कर प्रसाद स्वरूप लेना ग्रहण करना शुरू किया की थोड़ा पाप तो कटेगा शंकर भगवान पर दूध चढ़ाओ उसके बाद पियो और यह अच्छी बात है यह उस समय की बात है जब धरती पर मनुष्य कम थे जनसंख्या कम थी तो दूध ज्यादा थे मनुष्य कम तो लोग शिव जी पर चढ़ाते थे और फिर बाद में खुद पीते थे बाद में जनसंख्या बिस्फोट हुआ तो मनुष्य को दूध कम पड़ने लगी और दूध महंगा होने लगा स्वार्थी अमिरखान ने यंहा तक कह दिया कि भगवान शंकर पर दूध चढ़ाकर दुरुपयोग करने के बजाय वह दूध किसी गरीब के बच्चे को पिला देना चाहिए जबकि मनुष्य के बच्चे को किशोरावस्था आते आते दूध पीना छोड़ देना चाहिए
इस पर अब
वैज्ञानिक भी काम करते
है। और आज नहीं कल हमें
समझना पड़ेगा कि अगर
आदमी में बहुत सी पशु
प्रवृतियां है तो कहीं
उनका कारण पशुओं का दूध
तो नहीं है। अगर उसकी
पशु प्रवृतियों को बहुत
बल मिलता है तो उसका
करण पशुओं का आहार तो
नहीं है।
आदमी का क्या आहार है,
यह अभी तक ठीक से तय
नहीं हो पाया है, लेकिन
पशुओं की माताओ का दूध केवल मनुष्य ही सेवन करता है

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