
किसान पर थप्पड़ और सत्ता का तकियाकलाम — जिम्मेदार कौन?
राजेश कुमार यादव की कलम से
लखनऊ उत्तर प्रदेश
तिथि: 27 अगस्त 2025
प्रस्तावना
लखनऊ के मस्तेमऊ गांव में एक किसान को नायब तहसीलदार द्वारा थप्पड़ मारे जाने की घटना ने पूरे प्रदेश में प्रशासनिक संवेदनशीलता और सरकारी जवाबदेही पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। जब वही अधिकारी जिनका काम न्याय दिलाना है, वे खुद हाथ उठाने लगें, तो यह केवल एक थप्पड़ नहीं रह जाता — यह एक प्रशासनिक हिंसा बन जाता है।
घटना का विवरण
मस्तेमऊ गांव में सोमवार को सरकारी जमीन से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई चल रही थी। टीम का नेतृत्व कर रहे नायब तहसीलदार रत्नेश कुमार ने, विवाद के दौरान, किसान राम मिलन को इतने जोर से थप्पड़ मार दिया कि वह जमीन पर गिर पड़ा और उसके कान से खून बहने लगा। स्थिति इतनी गंभीर थी कि किसान को तुरंत PGI ट्रॉमा सेंटर रेफर करना पड़ा।
प्रशासन का मौन और जनता का आक्रोश
जिस तेजी से थप्पड़ पड़ा, उसी तेजी से प्रशासनिक प्रतिक्रिया नहीं आई। किसान की पत्नी और ग्रामीणों ने जब थाने में शिकायत की, तो केवल “जांच की जाएगी” कह कर टाल दिया गया। इससे क्षुब्ध होकर किसानों ने थाने पर प्रदर्शन किया और नायब तहसीलदार को निलंबित कर गिरफ्तार करने की मांग की।
क्या एक आम नागरिक को न्याय पाने के लिए भीड़ बनकर सड़क पर उतरना ज़रूरी है?
एक थप्पड़ की गूंज – कानूनी और नैतिक पहलू
नायब तहसीलदार का यह कृत्य निम्न कानूनी धाराओं में आता है:
IPC 323 – चोट पहुंचाना
IPC 325 – गंभीर चोट (यदि हड्डी या स्थायी क्षति हुई हो)
SC/ST ऐक्ट – यदि किसान अनुसूचित जाति से हैं
यह न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि नैतिक पतन की पराकाष्ठा भी है। क्या प्रशासनिक पद किसी को “कानून से ऊपर” होने का अधिकार देता है?
क्या यह एक isolated मामला है? नहीं!
ऐसी घटनाएँ पहले भी सामने आती रही हैं, जहाँ सरकारी अधिकारी अपनी पद की गरिमा को ताक पर रखकर नागरिकों के साथ अमानवीय व्यवहार करते हैं। इसका मुख्य कारण है:
शून्य जवाबदेही
राजनीतिक संरक्षण
आंतरिक अनुशासन की कमी
जब तक ऐसे मामलों में सख्त और त्वरित कार्रवाई नहीं होती, तब तक प्रशासन और जनता के बीच की खाई और गहरी होती जाएगी।
समाधान क्या है?
1. अधिकारियों की संवेदनशीलता पर प्रशिक्षण: प्रशासनिक अफसरों को सिर्फ कानून ही नहीं, मानव व्यवहार भी सिखाया जाना चाहिए।
2. स्वतंत्र जांच समिति: ऐसी घटनाओं की जांच किसी स्वतंत्र समिति द्वारा हो, न कि उन्हीं के विभाग द्वारा।
3. सीसीटीवी/बॉडी कैमरा अनिवार्यता: जमीन से जुड़े हर अभियान में रिकॉर्डिंग अनिवार्य की जाए ताकि सच्चाई स्पष्ट हो।
4. समयबद्ध न्याय: ऐसे मामलों का निपटारा विशेष अदालतों के माध्यम से 30 दिनों में किया जाए।
उपसंहार
राम मिलन केवल एक नाम नहीं — वह एक प्रतीक है उस न्याय के खून का, जो अक्सर सत्ता के थप्पड़ों में दब जाता है। यह समय है कि सरकार और प्रशासन दोनों आत्मनिरीक्षण करें। अगर अब भी आंखें नहीं खुलीं, तो कल और भी राम मिलन थप्पड़ खाएंगे — और हम केवल “जांच चल रही है” सुनते रह जाएंगे।
आपकी राय?
क्या ऐसे अफसरों को तत्काल बर्खास्त किया जाना चाहिए?
क्या जनता को शांतिपूर्ण न्याय की गारंटी नहीं मिलनी चाहिए?