
श्री राम के अनन्य सेवक हनुमान जी अमर, चिरंजीवी एवं अजर है। उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान माता सीता और प्रभु श्री राम दोनों ने ही दिया है। माता सीता हनुमान जी को आशीष देते हुए कहती हैं।
अजर अमर गुननिधि सुत होहू।
करहु बहुत रघुनायक छोहू।।
करहु कृपा प्रभु अस सुनि काना।
निर्भर प्रेम मगन हनुमाना।।(श्री रामचरितमानस सुंदरकांड)
अर्थात हे पुत्र तुम अजर (बुढ़ापे से रहित), अमर और गुणों के खजाने होओ। श्री रघुनाथ जी तुम पर बहुत कृपा करें। ‘ प्रभु कृपा करें’ ऐसा कानों में सुनते ही हनुमान जी पूर्ण प्रेम में मगन हो गए।
भगवान श्री राम जी जब अपनी मानव लीलाओं को संवरण कर साकेत जाने लगे उस समय उन्होंने हनुमान को अपने पास बुलाकर कहा -हे हनुमान अब मैं अपने लोग को परेशान कर रहा हूं तुम्हें संसार में कभी कोई कष्ट नहीं होगा इसके अतिरिक्त अपने भक्तों का कष्ट दूर करने का सामर्थ तुम्हें प्राप्त होगा। जिस स्थान पर मेरा मंदिर बनेगा जहां मेरी पूजा होगी वहां तुम्हारी मूर्ति भी होगी।
इस लोक में जब तक मेरी कथा रहेगी तब तक तुम्हारी सुकीर्ति भी जीवित बनी रहेगी। तुमने मेरे पर जो-जो उपकार किए हैं उनका बदला मैं कभी भी नहीं चुका सकता। इतना कह कर श्री राम ने अपनी मानव लीला संवरण कर ली। हनुमान जी नेत्रों में अश्रु भरकर श्री सीताराम को बार-बार प्रणाम कर तपस्या के लिए हिमालय चले गए।
किम पुरुष वर्ष में हनुमान जी का निवास –
किंपुरुष वर्ष हेमकूट पर्वत के दक्षिण में स्थित है। हेमकूट पर्वत हिमालय में तपस्या करने का वह स्थान है जहां शीघ्र ही सिद्धि मिल जाती है। यह है गंधर्व एवं किन्नरों का निवास स्थान है।
इनका एक अलग लोक होता है जहां ये निवास करते हैं। ये देवताओं के गायक, नृत्यक और स्तुति पढ़ने वाले होते हैं। नारदजी ने भी किंपुरुष वर्ष में हनुमान जी को वन की सामग्री से श्रीराम की मूर्ति का पूजन करते हुए और गंधर्वों के मुख से रामायण का गान करते हुए देखा था।