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लखनऊ उत्तर प्रदेश. महर्षि देवराहा बाबा .एक दिव्य संत की अमर गाथा .राजेश कुमार यादव की कलम से

लखनऊ उत्तर प्रदेश. महर्षि देवराहा बाबा .एक दिव्य संत की अमर गाथा .राजेश कुमार यादव की कलम से

महर्षि देवराहा बाबा: एक दिव्य संत की अमर गाथा

विधिक आवाज समाचार
लखनऊ उत्तर प्रदेश

 

रिपोर्ट राजेश कुमार यादव की कलम से
दिनांक 19/2025

परिचय

महर्षि देवराहा बाबा भारतीय संत परंपरा के एक अद्भुत एवं रहस्यमय योगी माने जाते हैं। उनका जीवनकाल, तपस्विता और चमत्कार आज भी लोगों को आश्चर्य में डाल देते हैं। उत्तर भारत में विशेष रूप से उन्हें भगवान तुल्य सम्मान प्राप्त था। लोग उन्हें “चलते-फिरते नारायण” कहकर पूजते थे। वे गंगा तट पर एक मचान पर निवास करते थे और यहीं से लोगों को आशीर्वाद देते थे।

 

जन्म और आरंभिक जीवन

देवराहा बाबा का जन्म समय और स्थान आज भी एक रहस्य बना हुआ है। कहा जाता है कि वे 250 से अधिक वर्षों तक जीवित रहे। कुछ कथाओं के अनुसार वे त्रेता युग से ही जीवित थे। वे उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के रहने वाले थे, और शायद इसी कारण उन्हें “देवराहा” कहा गया।

 

जीवन शैली और साधना

देवराहा बाबा साधना में लीन एक महान योगी थे। उनका अधिकांश जीवन जल के समीप (विशेषकर गंगा नदी के तट पर) बीता। वे एक ऊँची मचान पर रहते थे और कभी ज़मीन पर नहीं उतरते थे। बाबा वस्त्र नहीं पहनते थे और उन्होंने संपूर्ण जीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया।

उनकी दिनचर्या अत्यंत सरल थी – मौन रहना, ध्यान करना, जल परिक्रमा करना और भक्तों को आशीर्वाद देना। वे किसी भी भौतिक सुख-सुविधा से दूर रहते हुए आत्मानुभूति में रमे रहते थे।

 

चमत्कार और लोककथाएँ

देवराहा बाबा के अनेक चमत्कार प्रचलित हैं। माना जाता है कि उन्होंने कई बार भविष्यवाणियाँ कीं जो पूर्णतः सत्य सिद्ध हुईं। कहा जाता है कि:

उन्होंने कई राजनीतिक नेताओं को आशीर्वाद दिया जिनका जीवन बदल गया।

वे एक साथ कई स्थानों पर देखे गए, जिसे “योगिक विभुति” कहा जाता है।

वे बिना भोजन और जल के वर्षों तक जीवित रहे।

उनका शरीर कभी वृद्ध नहीं होता था, जिससे उनके दीर्घायु होने की बात को बल मिलता है।

 

 

राजनीति और प्रसिद्धि

भारतीय राजनीति में भी देवराहा बाबा का विशेष प्रभाव था। पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल बहादुर शास्त्री जैसे बड़े नेता उनके दर्शन के लिए आते थे। वे किसी दल विशेष का समर्थन नहीं करते थे, परंतु राष्ट्रहित की बात करते थे।

 

निर्वाण

देवराहा बाबा ने अपना शरीर 19 जून 1990 को त्याग दिया। उनका महाप्रयाण वृंदावन (उत्तर प्रदेश) में हुआ। उनके अनुयायियों के अनुसार, बाबा ने अपने निर्वाण की तिथि पहले ही बता दी थी। उनका पार्थिव शरीर वृंदावन में ही समाधि रूप में विद्यमान है।

 

विरासत

देवराहा बाबा की शिक्षाएँ आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं। वे सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, सेवा और साधना के प्रतीक माने जाते हैं। उनके अनुयायी आज भी उनकी पूजा करते हैं और उनके बताए मार्ग पर चलने का प्रयास करते हैं।

 

निष्कर्ष

महर्षि देवराहा बाबा केवल एक संत नहीं, अपितु भारत की अध्यात्मिक परंपरा का जीवंत उदाहरण थे। उनका जीवन अज्ञात, अलौकिक और दिव्य अनुभवों से भरा हुआ था। उन्होंने जो जीवन जिया, वह सामान्य मानव के लिए संभव नहीं, पर प्रेरणास्रोत अवश्य है। ऐसे दिव्य महापुरुषों का स्मरण ही जीवन को पावन बना देता है।
देवरहा बाबा—एक महान योगी, जिनके अद्भुत चमत्कार और अद्वितीय जीवन-शैली ने उन्हें अद्वितीय बना दिया। आपके सवाल के अनुसार, हम देवरिया (मइल) में बाबा के निवास-समय और वहाँ से प्रस्थान के बारे में विस्तार से जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं।

🏡 1. “देवरहा बाबा आश्रम – मइल, देवरिया”

मइल (Maiel) गांव, सलेमपुर तहसील, देवरिया जनपद, सरयू नदी के किनारे बाबा का आश्रम था, जहाँ वे लकड़ी के 12‑15 फ़ुट ऊँचे मचान पर रहते थे ।

ये मचान उनका “महल” था—चारों खम्भों वाला एक गदा जैसा मंच, जहाँ से वे आशीर्वाद देते थे ।

 

2. “आठ महीने मइल में, चार माह भ्रमण पर”

स्थानीय मान्यता अनुसार, बाबा वर्ष में लगभग आठ महीने मइल में बिताते थे ।

शेष चार महीने वे बनारस (रामनगर), प्रयाग (कुंभ में माघ), मथुरा (फागुन में) और कुछ समय हिमालय में एकांतवास में बिताते थे ।

 

3. “मइल से प्रस्थान: वृन्दावन में अंतिम दिन”

जीवन के अंत में बाबा ने माइल मचान छोड़ दिया और वृन्दावन जाकर यमुना किनारे वहीं अपना अंतिम समय बिताया ।

11 जून 1990 को बाबा ने दर्शन देना बंद कर दिया, और 19 जून 1990 (योगिनी एकादशी) को उनका देह त्याग हुआ, वहीँ वृन्दावन में ।

 

4. अन्य महत्वपूर्ण जानकारी

बाबा ने माइल आश्रम में सन्‌ 1911 में राजा जॉर्ज पंचम और प्रिंस फिलिप को दर्शन दिए ।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद बचपन में दर्शन करने साथ ही बाद में उन्हें पत्र लिखकर धन्यवाद ज्ञापित किए, 1954 में कुंभ में उनका सार्वजनिक पूजन हुआ ।

उनके चमत्कारों में 30 मिनट तक पानी में बिना साँस लिए रहना, जंगल के जानवरों को वश में करना, मन की भाषा समझना आदि प्रमुख थे ।

 

📝 कुल सारांश तालिका

विषय विवरण

स्थान मइल, मचान पर—मेला से लगभग कोस दूर सरयू तट, देवरिया
निवास अवधि वर्ष में लगभग ८ महीने मइल में
अन्य स्थान बनारस, प्रयाग, मथुरा, हिमालय
माइल से प्रस्थान जीवनांत में वृन्दावन चले गए
देह त्याग 19 जून 1990, योगिनी एकादशी, वृन्दावन
चमत्कार जल पर चलना, लंबा प्रतिरोध, मन-भाषा, प्राकृतिक घटनाएं

 

📰 सुझाए गए लेख शीर्षक

1. “देवरहा बाबा का आश्रम: माइल देवरिया में आठ महीने का निवास”

2. “माइल से वृन्दावन तक: देवरहा बाबा की यात्रा और अंतिम समाधि”

3. “देवरहा बाबा के चमत्कार: पानी, जंगल और राजनीति पर प्रभाव”

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