
चाहत की अनकही बातें
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हृदय की अनकही बातें कभी जब लब पर आती हैं
स्वरों में कम्पन होती है. स्वयं पलकें झुक जातीं हैं।
कहीं भी दिल नहीं लगता मिलन की तीस सताती है
कभी जब तन्हाई मे. किसी की याद आती है।
प्रात: खुशियों से भर जाती शाम अभिसार में जाती है
दिन उदास रहता है.रात मे नींद न आती है।
निगाहें चंचल हो जाती हैं नज़र चौखट पर रहती है
ख़्वाब की दुनिया सजती है अधर स्मित सी रहती है।
कभी जो संगम नहीं होता गात अलसाई रहती है
निगाहें चार होते ही…. सतत विलसाई रहती हैं।
चाहत गोस्वामी जयपुर