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शीर्षक – सुकून मिलेगा शमशान में डॉ एच सी विपिन कुमार जैन कुछ सरकारी, किताबें बेचकर खा गए। कुछ बच्चों के, फीस का शुल्क ही हड़प गए। कर्म हुए हैं, इनके ऐसे खराब, गंगाजल को भी समझ रहे हैं, शराब, जल रहे हैं,अपने ही कर्मों के तेजाब में फस गई है इनकी कर्मों की किताब, हिसाब में। अब अपने ही जीवन से हो गए हैं, परेशान। सुकून के नाम पर याद आता है, शमशान। सरकारी दफ्तर में बैठकर जीवित को मुर्दा बता दिया, पड़ रहे हैं हैं छापे बंद हो रहा है, कारोबार न जाने, इनका यह राज किस अपने ने बता दिया।

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