इसी दौरान उन्हे ग्राम पंचायत के माध्यम से ज्ञात हुआ की मनरेगा योजना अंतर्गत पात्र स्वयं सहायता समूह के सदस्य महिलाओं को मुर्गी पालन हेतु शेड बनाकर दिया जा रहा है। इसपर भूमें बाई के द्वारा इस संबंध में पंचायत के कर्मचारियों से संपर्क कर जानकारी ली गई एवं कार्य स्वीकृति हेतु आवश्यक दस्तावेज ग्राम पंचायत को दिया गया। दस्तावेज उपलब्ध होने के कुछ ही दिनों में कार्य की प्रशासकीय स्वीकृति मिल गई और मुर्गी शेड निर्माण कार्य प्रारंभ किया गया और प्रशासनिक अधिकारी एवं कर्मचारियों की देखरेख में मुर्गी शेड अति शीघ्र बन कर तैयार हो गया। जैसा कि प्रारंभ में ही स्पष्ट है कि वर्तमान समय में मुर्गी पालन को यदि उचित तरीके से उचित देखरेख में किया जाए तो ये अत्यंत लाभकर व्यवसाय बन जाता है, फलस्वरूप श्रीमती भूमें को भी इसका लाभ बहुत जल्द ही मिलना शुरू हुआ। उन्होंने तैयार हुए मुर्गी शेड में मुर्गी पालन का कार्य शुरू किया। जिसके लिए उन्हें जिला प्रशासन के तरफ से लेयर बर्ड प्रदाय किया गया। जो मुख्य तौर पर अंडे उत्पादन के लिए थी। इस प्रकार उनके पास अब तकरीबन 40 से 50 मुर्गे मुर्गियां है, जिनको बेच कर उन्हें लगभग 5500 रूपये प्रतिमाह आय हो जाती है। साथ ही मुर्गियों से उन्हें अंडे भी प्राप्त होते है जिसे वे स्थानीय हाट बाजारों में विक्रय कर देती है। अपने जीवन में आये इस सुखद बदलाव के लिए भूमे बाई ने जनपद पंचायत कुआकोंडा एवं जिला प्रशासन को साधुवाद भी दिया है। कुल मिला कर मनरेगा जैसी शासकीय योजना से लाभान्वित होकर आज गावं-गावं में भूमे बाई जैसे हितग्राही आजीविका का नया साधन पा कर आर्थिक सशक्तिकरण की नई इबारत लिख रहे है।