जयकार में श्रद्धा, व्यवहार में डंडा – यही है हमारा धर्म?
लेखक – के.एम.भारद्वाज
सनातन धर्म को मानने वाले लोगों को अक्सर “गौ माता की जय” कहते सुना जाता है। यही हमारा धर्म हमें सिखाता है। लेकिन विडंबना यह है कि कुछ लोग, जो स्वयं को हिन्दू कहते हैं, वही गौ माता की जय-जयकार करने के बाद यदि गौ माता उनके द्वार पर रोटी की आस में आ जाएं, तो उन्हें डंडा मारकर भगा देते हैं।
सावन के पवित्र माह में सभी हिन्दू धर्मावलंबियों को भगवान शिव, जिन्हें पशुपतिनाथ भी कहा जाता है, की आराधना करते देखा जाता है। भक्त बड़े ही श्रद्धा भाव से भगवान शंकर के नंदी जी की प्रतिमा के कान में अपनी मनोकामनाएँ कहते हैं। किंतु अफसोस तब होता है जब वही नंदी जी यदि सड़क पर दिख जाएं, तो लोग उन्हें डंडा मारते हैं।
सनातन धर्म में कुकुर (कुत्ते) का भी विशेष महत्व है। मान्यताओं के अनुसार कुकुर भगवान भैरव का दास माना गया है। हमारे पूर्वज घर की पहली रोटी गाय को और आखिरी रोटी कुत्ते को निकालते थे। यही हमारी संस्कृति और हमारा धर्म हमें सिखाते हैं। परंतु आज के समाज में वही कुकुर नीच और गंदा प्राणी समझा जाने लगा है। जबकि धार्मिक अवसरों पर सबके भीतर उसी जीव के प्रति आस्था और प्रेम उमड़ने लगता है।
सवाल यह है कि क्या इस दिखावटी समर्पण से सृष्टि के रचयिता भगवान प्रसन्न होंगे?
आज धर्म के लिए बोलने वाले बहुत हैं, लेकिन वास्तव में धर्म का पालन करने वाले बहुत कम। वर्तमान का यही आचरण आने वाली पीढ़ियों को दिशा देगा। अब वह दिशा सकारात्मक होगी या नकारात्मक—यह हमारे आज के कर्म ही तय करेंगे। यदि मनुष्य की यह नफ़रत बेजुबानों के प्रति और गहरी होती गई, तो संभव है कि आने वाले समय में यही नफ़रत इंसानों तक भी पहुँच जाए।