शाहजहाँपुर
मृदा उर्वरता को संरक्षित रखने के लिए साठा धान की खेती भूमि एवं पर्यावरण के लिहाज से अनुकूल नहीं है। इधर साठा धान के लगाने से भू-गर्भ जल स्तर के गिरने एवं पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्परिणामों को दृष्टिगत रखते हुए कृषि विभाग द्वारा जिले में साठा धान की खेती को प्रतिबंधित कर दिया है लेकिन कुछ किसान सरकार के आदेशों को नजर अंदाज कर साठा धान लगाकर जल का दोहन कर रहे है ।इस फसल के उत्पादन से किसानों को त्वरित लाभ तो दिखाई दे रहा है, लेकिन इसके दूरगामी परिणामों से अनभिज्ञ किसान इसके उत्पादन पर जोर देते आ रहे हैं। बंडा ब्लॉक के पोहकरपुर, सिकरहनिया, बिलंदपुर सुंदरपुर, अजोधापुर, अखत्यारपुर धौकल, भांभी, बरीबरा, गहलुईया, नवदिया बंकी, देवकली,पिपरिया घासी आदि गांवों मे बड़े स्तर पर किसानों ने धान की रोपाई की हैं ।
*60 दिनों में तैयार हो जाती है फसल*
दरसअल साठा धान की फसल 60 दिनों में तैयार हो जाती है, लेकिन इसको तैयार करने के लिए रोजाना पानी की जरूरत पड़ती है। किसान लगातार 60 दिनों तक इस फसल में पानी डालते हैं। साठा धान की पौध फरवरी में ही डलना शुरू हो जाती है। करीब 30 दिन में पौध तैयार हो जाती है।इसके बाद किसान सरसो, गेंहू काटकर, गन्ने की पेड़ी के खेतों में साठा धान की फसल मात्र 60 दिन में तैयार कर लेते हैं।इसके बाद तुरंत उसी खेत में दोबारा धान की दूसरी प्रजाति की फसल तैयार कर ली जाती है।
*साठा धान का उत्पादन बड़ी वजह*
जिले में करीब एक दशक पूर्व कुछ बंगाली विस्थापितों ने साठा धान की पैदावार शुरू की थी। कम लागत देख तराई के सिख फार्मरों ने भी इसकी पैदावार करनी शुरू कर दी। अब इसका रकबा साल दर साल बढ़ता जा रहा है।
मुख्य धान की फसल से एक एकड़ में करीब 20 क्विंटल, जबकि साठा धान करीब 35 से 40 क्विंटल पैदा होता है, लेकिन यह मुनाफा अगले दस सालों में काफी महंगा साबित हो सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक साठा फसल में हर तीसरे दिन पानी की खपत होने से भूगर्भ जल का खासा दोहन होता हैं ।
पत्राचार के माध्यम से जिला कृषि अधिकारी को अवगत कराया है। बाकी सर्वेक्षण करा कर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।
संजय पाठक
उप जिलाधिकारी पुवायां